भाकृअनुप-केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान

संस्थान परिचय

1. संस्थान के बारे में

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा भारत के अर्ध शुष्क क्षेत्रों में कुछ चयनित फलों पर अनुसंधान के लिए सन् 1976 में पांचवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 10 केन्द्रों पर एक एपी सेस निधि योजना के तहत एक तदर्थ परियोजना आरंभ की गयी थी। छठी योजना के दौरान, इस तदर्थ योजना को इसी रूप में विलय करते हुए अखिल भारतीय समन्वित फल सुधार परियोजना (AICFIP) के सेल III के रूप में नामित किया गया। सातवीं योजना के दौरान इस परियोजना को अखिल भारतीय शुष्क क्षेत्र फल समन्वित अनुसंधान परियोजना का नाम देकर एक स्वतंत्र परियोजना के रूप में हरियाणा कृषि विश्‍वविद्यालय, हिसार में मुख्यालय स्‍थापन्‍न के साथ पुनर्गठन किया गया था। इस प्रकार इस परियोजना का कार्य भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों अथवा राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में या तो अपर्याप्त जनशक्ति या बुनियादी ढांचे में कमी को देखते हुए कुछ चयनित फलों के अनुसंधान कार्यों के बहुस्‍थानिक परीक्षण को करना तय किया गया था। इसलिए, शुष्क क्षेत्र में बागवानी फसलों की क्षमता को साकार करने और लोगों के लिए पोषण और आय सुरक्षा को प्राप्त करने की आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कृषि अनुसंधान और शिक्षा पर कार्य समूह की सिफारिश पर भारतीय योजना आयोग के अनुमोदन के बाद सातवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान राष्ट्रीय शुष्क बागवानी अनुसंधान केन्द्र (NRCAH) की स्थापना की गयी थी। इसके लिए परियोजना समन्वयक (शुष्क क्षेत्र फल) को इस केन्‍द्र की स्‍थापना की देखरेख हेतु नवंबर 1990 विशेष कार्य अधिकारी का अतिरिक्त दायित्व सौंपा गया था । नवंबर, 1992 में करीब राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर के परिसर के समीप में इस केन्‍द्र के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया था। वर्ष 1993 में परियोजना समन्वयक (शुष्‍क क्षेत्र फल) ने अखिल भारतीय शुष्क क्षेत्र फल समन्वित अनुसंधान परियोजना के केन्‍द्र को हरियाणा कृषि विश्‍वविद्यालय, हिसार से लाकर बीकानेर में स्‍थानांतरित कर शुष्‍क बागवानी अनुसंधान केन्‍द्र का कार्य वास्‍तविक रूप में आरंभ किया। अल्‍प अवधि में राष्ट्रीय शुष्क बागवानी अनुसंधान केन्द्र के द्वारा की गई प्रगति एवं शुष्क क्षेत्र की भविष्य की जरूरतों के फलस्‍वरूप, 27 सितंबर, 2000 से इसे संस्‍थान का दर्जा दिया और इसका नाम केन्‍द्रीय शुष्क बागवानी संस्‍थान, बीकानेर रखा गया। इसके पश्‍चात 01 अक्टूबर, 2000 से भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्‍थान, बंगलौर के गोधरा (गुजरात) स्थित केन्द्रीय बागवानी परीक्षण केन्‍द्र को इसमें विलय कर दिया गया था।

मुख्य घ्येय

  1. शुष्क क्षेत्र की बागवानी फसलों का उत्पादन एवं उपयोग बढ़ाने के लिए तकनीकियां विकसित करने हेतु योजना लक्षित मूल अध्ययन करना।
  2. शुष्क बागवानी फसलों के ‘राष्ट्रीय जीन बैंक’ के रूप में कार्य करना।
  3. शुष्क वातावरण में बहु-बागवानी फसलों का प्रभावी फसल-चक्र विकसित करना।
  4. शुष्क बागवानी से संबंधित वैज्ञानिक सूचनाओं के ‘राष्ट्रीय केन्द्र’ के रूप में कार्य करना।
  5. राज्य कृषि विश्‍वविद्यालयों तथा अन्य समान कार्य करने वाले संस्थानों के मध्य मुख्य समन्वयक की भूमिका के साथ शुष्क बागवानी के ‘मानव संसाधन विकास केन्द्र’ के रूप में कार्य करना।
  6. शुष्क बागवानी के विकास एवं अनुसंधान के लिए मार्गदर्शी परामर्श उपलब्ध कराना।

2. स्थान

केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान का मुख्यालय बीकानेर शहर से 10 किमी दूर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 15 (बीकानेर-श्रीगंगानगर रोड) पर स्थित है जो 280 उत्‍तरी अक्षांश पर तथा 730 .18 पूर्वी देशांतर पर है तथा समुद्र के तल से 234.84 मी. ऊपर । आवर्तक सूखा और चरम शुष्कता यहा आम घटना होती है। यहां की औसत वर्षा 230 मिमी / वर्ष है। मई-जून (औसत अधिकतम तापमान 42-9 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम 29.6 डिग्री सेल्सियस) सबसे गर्म और दिसंबर-जनवरी (औसत अधिकतम तापमान 23.7 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम 8.9 डिग्री सेल्सियस) सबसे ठंडे महीने हैं। सामान्‍यत: जनवरी और फरवरी में कभी-कभी पाला भी पड़ता है। इस क्षेत्र की मिट्टी रेतीली व टीलों वाली है जिसमें उर्वरता और जल धारण क्षमता कम है।

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