भाकृअनुप-केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान

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Patent Certificate:- BIOPESTICIDE COMPOSITIONS AND FORMULATION FROM (Citrullus colocynthis) FOR INSECT CONTROL


Tभारत में जैविक कृषि को बढ़ावा देने के कार्य में भाकृअनुप-केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान ने एक नया अनुसंधान कर किसानों के लिए जैव कीटनाशी तैयार किया है जो न केवल जैविक कृषि में सहायक होगा वरन् रासायनिक कीटनाशी से होने वाली हानियों को भी रोकने में सक्षम होगा। इस बायोपेस्टीशसाइड का नाम ''थार जैविक 41 इसी'' रखा है तथा केन्द्री य शुष्कष बागवानी संस्था‍न के नाम से इसे भारत सरकार ने ''पेटेंट'' करवा लिया है। संस्थाकन की उपलब्धि पर इसे बनाने वाले वैज्ञानिक डॉ श्रवण एम. हलधर और उनकी टीम को बधाई देते हुए संस्था न निदेशक डॉ. डी. के. समादिया ने कहा कि यह जैवकीटनाशी से मृदा में रासायनिक कीटनाशी से होने वाले दुष्प्र भावों को भी रोका जा सकेगा। इस बायो पेस्टीमसाइड के निर्माण में लगे कीट वैज्ञानिक डॉ. श्रवण हलधर ने बताया कि इसका निर्माण प्रदेश में जैविक खेती की मुहिम को प्रोत्साहित करने के लिए खरपतवार के रूप में खेतों में उगने वाले तुम्बाी फल किया है, जो विभिन्न फसलों में 60-70 फीसदी तक नुकसान पहुंचाने वाले हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा, स्पोडोप्टेरा लिटुरा, सफेद मक्खी और एफिड जैसे कीटों का खात्मा करेगा। डॉ. हलधर का कहना है कि तैयार जैव कीटनाशक से उक्त कीटों के लार्वा का शत प्रतिशत निदान संभव है। जबकि, व्यस्क कीटों से 70-80 फीसदी तक फसल सुरक्षा मिलती है। उन्होंदने कहा कि पेंटेंट मिलने के साथ ही इसके व्यवसायीकरण की दिशा में भी प्रयास होंगे। संस्थायन ने तुम्बा से जैव कीटनाशक बनाने का कार्य वर्ष 2015 में आरंभ किया था। चार साल के गहन अनुसंधान के बाद यह जैव कीटनाशक बनकर तैयार हुआ है। उन्होंने बताया कि पैटेट मिलने के बाद खेतों में खरपतवार के रूप में उगने वाले तुम्बा किसानों के लिए आय का अच्छा साधन भी बन जायेगा। इस जैव कीटनाशक का परीक्षण शुष्क क्षेत्रीय फलों के साथ-साथ कुष्मांैडकुल की सब्जी फसलों पर किया गया है। जिससे इसके सकारात्मक परिणाम मिले है। यह जैव कीटनाशक किसान के मित्र कीटों को कोई हानि नहीं पंहुचाता है। इसका मानव स्वाटस्य्े पर भी कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है। यह पूर्ण रूप से सुरक्षि‍त कीटनाशी है। डॉ. हलधर ने बताया कि जैव कीटनाशक थार जैविक 41 ईसी का उपयोग शुष्कर क्षेत्र में पैदा होने वाली अधिकांश फसलों में किया जा सकता है। इसकी डोज प्रति लीटर पानी में 4-5 एमएल रखी गई है।

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